चुनौती भरे समय का सामना | chunoti bhare samay ka samna

 चुनौती भरे समय का सामना

जब तक सकरात्मक सोच के साथ ब्यापक बदलाव की दिशा मे नहीं बढ़ेंगे, तब तक महामारी के चलते जो छति पहुंची, उसकी भरपाई मुश्किल है

कोरोना वायरस से उपजी महामारी कोविड -19 ने वर्ष 2020 पर इतना व्यपाक असर डाला कि उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है चीन के वुहान शहर से निकले इस वाइरस ने समुचि मानवता को झकझोर कर रख दीया | इस महामारी के दुपरिणाम पुरे विश्वा को भोगना पड़े है | महाशक्ति अमेरिका समेत कुछ विकसित देश इसलिए कही अधिक प्रभवित हुए, क्यू कि उन्होंने प्रारम्भ मे कोविड -19 को ले कर पर्याप्त गंभीर और सतर्कता नहीं दिखाई | भारत भी इस महामारी से अछूता नहीं रहा, लेकिन अगर आबादी के लिहाज से देखा जाए तो वाह उसके असर से एक हद तक बच रहा इसका श्रेय केंद्र और राज्य सरकारों को तो जाती ही है लेकिन सबसे अधिक प्रशंसा करनी होगी डॉक्टरों और अन्य स्वस्थ कर्मियों की, जिन्होंने सिमित संसाधनों के बावजूद इस महामारी के प्रकोप को बढ़ने नहीं दीया | विश्व के कई देशों मे कोविड -19 से लड़ने वाली वैक्सीन लगना शुरू हो गई है उम्मीद है अगले कुछ दिनों मे भारत मे भी इसकी शुरुआत हो जाएगी | इसके बाद भी हाल - फिलहाल महामारी से पीछा नहीं छूटने वाला | एक तो भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश मे सभी को वैक्सीन लगना जटिल कार्य है और दूसरे, इसमें समय भी लगेगा | ऐसे मे यह मानकर चला जाना चाहिए कि कम से कम अगले छह महीने तक सतर्क रहना ही होगा

कोरोना महामारी ने सब पर असर डाला और सबने अपनी अपनी तरह से उसका सामना किया है लेकिन यदि किसी ने सबसे अधिक बदलाव को आत्मासात किया तो वो है विधार्थी! उन्होंने तमाम समस्याओ के बाद भी ऑनलाइन माध्यम से अपनी पढ़ाई जारी रखी | निःसन्देह घर पर कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन  के जरिये पढ़ाई आसान नहीं, पर विद्यार्थियों ने इस चुनौती से पार पाया | एक सचाई यह भी है कि ग्रामीण इलाकों के गरीब छात्र इंटरनेट और स्मार्ट फोन के अभाव मे अपनी पढ़ाई नहीं कर सके | उनकी पढ़ाई को काफी नुकसान हुआ भले ही जैसे तैसे पढ़ाई करने वाले छात्र अगली कक्षा मे पहुंच गए हो, लेकिन स्कूल - कॉलेज जाकर कक्षा मे या कक्षा से बाहर वो जो अनुभव हासिल करते है उससे वो वंचित रहे |  यह एक बड़ नुकसान है, क्योंकि यह अनुभव छात्रों के व्यक्तित्व

निर्माण मे सहायक बनता है वैसे तो सरकार ने महामारी के दौरान ही नई शिक्षा नीति कि घोषणा की, पर अभी उसके अमल का इंतजार है | इंतजार इसका भी है कि विद्यार्थी क्लास रूम में जाकर पढ़ाई करने मे कब सक्षम होते हैं? सरकारों को पठन-पाठन के पुराने माहौल को बहाल करने में प्राथमिकता का परिचय देना चाहिए, क्योंकि छात्र-छात्राएं ही भविष्य के कर्णधार हैं |



 कोरोना के चलते पूरे विश्व के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी गहरी चोट पड़ी | अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने के लिए कई आर्थिक पैकेज दिए, लेकिन वह नाकाफी साबित हुए इसी कारण अर्थव्यवस्था अभी भी संकटग्रस्त दिखती है | चुकि राजकोषीय घाटा सारी सीमाओं को लांघ गया है इसीलिए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कुछ कड़े फैसले लेने पड़ सकते हैं | समस्या यह है कि देश का जैसा राजनीतिक माहौल है और खासकर विपक्षी दलों ने जिस तरह से नकारात्मक रवैया अपना लिया है और वो बदलाव की हर प्रक्रिया को आगे बढ़ाने में बाधक बन रहे हैं, उससे सरकार के लिए कड़े फैसले लेना कठिन हो रहा है | संसद से पारित तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ किसान संगठनों ने जिस तरह अड़ियल रवैया अपना लिया है, उससे यही पता चलता है कि भारत में बदलाव की कोशिश कितनी मुश्किल से कामयाब होती है | यह देखना दयनीय है कि चंद किसान संगठनों की जीद पर सरकार को फसलों के अवशेष जलाने की छूट और रियायती बिजली की मांग पर नरम रवैया अपनाना पड़ा | मौजूदा माहौल को देखकर यही लगता है कि कल को किसी अन्य क्षेत्र में बदलाव की कोशिश पर इसी तरह का धरने प्रदर्शन कर सरकार पर बेवजह दबाव डालने की कोशिश होगी, सरकार कड़े और बड़े फैसले लेने के लिए जानी जाती है| नागरिकता संशोधन कानून लाने और अनुच्छेद 370 हटाने के बड़े फैसले यही साबित करता है कि यह सरकार राष्ट्रीय हितों पर आगे बढ़ने में संकोच नहीं करती |  यह इस सरकार के कड़े फैसले लेने और उन्हें लागू करने की सामर्थ्य का ही परिणाम है कि विभिन्न क्षेत्रों में बदलाव दिखाने लगा है, लेकिन वह पर्याप्त नहीं, क्योंकि देश के आधारभूत ढांचे में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं दिख रहा | वास्तव में इसीलिए लोगों में बेचैनी और असंतोष है |

 निश्चित लोग यह चाहते हैं कि भारत एक विकसित राष्ट्र बने और हर किसी के जीवन स्तर में व्यापक सुधार आए, लेकिन वह आसानी से बदलाव को अपनाने के लिए तैयार नहीं होते| अपेक्षित बदलाव ना हो पाने के पीछे एक बड़ा कारण यही नीतियों का भाव और उनके क्रिया वन्य में खामी भी है|  आज अगर देश के तमाम ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में सुधार और बदलाव का अपेक्षित असर नहीं दिखता तो उसके मूल में अनियोजित विकास ही है | हमारे नीति नियंता ओं ने आधारभूत ढांचे के विकास के लिए ना तो कोई दोस्त मानक बनाए और ना ही दूरदर्शिता का परिचय दिया |  इसी कारण आधारभूत ढांचा चरमरा ता दिख रहा है | इसके चलते समय और धन, दोनों की बर्बादी हो रही है, क्या 2021 में हम यह उम्मीद करें कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के आधारभूत ढांचे को बेहतर बनाने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे? ध्यान रहे कि यह कदम तभी सार्थक होंगे जब वह पुराने तौर-तरीकों से अलग होंगे और जनता उन्हें अपनी समर्थन प्रदान करेगी| यदि हमें विकसित राष्ट्र बनना है तो गलत नीतियों और परी पार्टियों का परित्याग करने के साथ सबसे अधिक ध्यान आधारभूत ढांचे को ठीक करने पर दिया जाएगा |

 वर्ष 2021 चुनौतियां पूर्ण रहने वाला है| इस चुनौती भरे समय में हर भारतीय के अंदर से या आवाज आनी चाहिए कि महामारी के कारण देश का जो नुकसान हुआ, उसकी जल्द से जल्द भरपाई हो सके| यह तभी संभव है जब सरकार और नागरिक मिलकर व्यापक बदलाव की दिशा में आगे बढ़ेंगे और विपक्षी दल रचनात्मक राजनीति का परिचय देंगे | जब तक हम सकारात्मक सोच के साथ व्यापक बदलाव की दिशा में नहीं बढ़ेंगे, तब तक इस महामारी से पहुंची क्षति की भरपाई मुश्किल है| अच्छा होगा कि आज हम सब स्वामी विवेकानंद की इस शब्द को आत्मसात कर उनसे प्रेरित हो-

 उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्ति ना हो जाए | 


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